अक्सर देखा गया है कि मस्जिद के अंदर नमाज़ के इन्तिज़ार में लोग बैठे हैं और उन्हें नींद की झपकी आ गई, या ऊँघने लगे तो वह समझते हैं कि हमारा वुज़ू टूट गया, और वह अज़'ख़ुद या किसी के टोकने से वुज़ू करने लगते हैं, यह ग़लत है।
मसअ़ला यह है कि ऊँघने या बैठे-बैठे झोंके लेने से वुज़ू नहीं जाता।
📚 (बहारे शरीअ़त, हिस्सा 2, सफ़ह 27)
तिर्मिज़ी और अबु दाऊद की हदीस में है: 👇🏻रसूलुल्लाह ﷺ के सहाबए किराम मस्जिद शरीफ़ में नमाज़े इशा के इन्तिज़ार में बैठे-बैठे सोने लगते थे यहाँ तक कि उनके सर नींद की वजह से झुक-झुक जाते थे, फिर वह दोबारा बग़ैर वुज़ू किये नमाज़ पढ़ लेते थे।
📚 (मिश्कात, मायुजिबुल वुज़ू, सफ़ह 41)
नींद से वुज़ू तब टूटता है जबकि ये दोनों शर्तें पाई जाएँ।👇🏻👇🏻
(1)- दोनों सुरीन (बटक) उस वक़्त ख़ूब जमे न हों।
(2)- सोने की हालत ग़ाफ़िल होकर सोने से मानेअ (रोकती) न हो। यानि इस क़दर सो जाना कि उसको कुछ पता ही न चले।
📚 (फ़तावा रज़विया, जिल्द 1, सफ़ह 71)
चित, या पट, या करवट से लेटकर सोने से वुज़ू टूट जाता है, उकड़ूँ बैठा हो और टेक लगाकर सो गया तो भी वुज़ू टूट जायेगा, पाँव फैलाकर बैठे-बैठे सोने से वुज़ू नहीं टूटता, चाहें टेक लगाए हुए हो। खड़े-खड़े या चलते हुए, या नमाज़ की हालत में, क़याम में या रुकूअ़ में, या दो ज़ानू सीधे बैठकर या सज्दे में जो तरीक़ा मर्दों के लिए सुन्नत है उस पर सो गया तो वुज़ू नहीं जायेगा। हाँ अगर नमाज़ में नींद की वजह से ज़मीन पर गिर पड़ा अगर फ़ौरन आँख खुल गई तो ठीक वरना वुज़ू जाता रहा। बैठे हुए ऊँघने और झपकी लेने से वुज़ू नहीं जाता।
📚 (ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह-हिन्दी, सफ़ह- 24, 25)
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